नई दिल्ली, नेशनल जनमत ब्यूरो।
तथाकथित ओबीसी समाज से प्रधानमंत्री और दलित समाज से राष्ट्रपति बनाकर केन्द्र में बैठी सरकार और नागपुर में बैठे सरकार के वास्तविक आकाओं ने पिछड़ों-दलितों की हिस्सेदारी खत्म करने का बहुत शानदार खाका तैयार किया है।
बीजेपी के हिन्दुत्ववादी एजेंडे के थिंकटैंक माने जाने वाले सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी की कही गई एक-एक बात का मतलब समझ में आ रहा है। स्वामी ने जयपुर के एक साहित्य सम्मेलन में कहा था कि सरकार आरक्षण खत्म भी नहीं करेगी और उसे महत्वहीन भी बना देगी।
संघ प्रायोजित मोदी सरकार कदम दर कदम स्वामी की बात को सच साबित करती जा रही है। एक से बढ़कर एक तरीके निकालकर दलितं-पिछड़ों की हिस्सेदारी को सीमित करने का प्रयास किया जा रहा है।
हालिया मामला इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के नाम पर देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों से आरक्षण का गुपचुप तरीके से खात्मा करने का है। इस मामले को वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक दिलीप मंडल अलग ढ़ंग से समझाने की कोशिश कर रहे हैं ….
समझिए जियो इंस्टीट्यूट के नाम पर हुआ खेल-
दिलीप मंडल लिखते हैं कि आप जियो यूनिवर्सिटी पर चुटकुले बनाते रहिए. इस बीच RSS-BJP की सरकार ने तीन सरकारी संस्थाओं IIT- बंबई, IIT-दिल्ली और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IISc) को स्वायत्त बनाकर रिजर्वेशन खत्म कर दिया है.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी किए गए Institute of Eminence के नियम पढ़िए. ये संस्थान स्वायत्त यानी ऑटोनॉमस होंगे. वहां नियुक्तियों और एडमिशन में रिजर्वेशन का जिक्र तक नहीं है.
आपकी सोच जहां तक जाती है, वहां से RSS के ब्राह्मण सोचना शुरू करते है. जियो के पास यूनिवर्सिटी के नाम पर अभी दो ईंट भी नहीं है. इसलिए उसे श्रेष्ठ संस्था बनाने पर हंगामा तो होना ही था. सो हंगामा हो गया.
क्या सरकार और RSS को यह मालूम नहीं था? मैं RSS के लोगों को मूर्ख नहीं मानता. उन्हें मालूम था कि विवाद होगा. लेकिन इस विवाद की आड़ में उन्होंने एक बड़ा काम कर लिया.
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दिमाग लगाकर खत्म कर दिया आरक्षण-
सरकार के नीति निर्धारकों को मालूम था कि अगर तीन सरकारी संस्थाओं को सीधे-सीधे श्रेष्ठ संस्थान बनाकर उन्हें नियुक्तियों, एडमिशन, फीस आदि के लिए स्वायत्त यानी ऑटोनोमस कर देंगे तो लोग नाराज हो जाएंगे. वैसे भी 2 अप्रैल के दलित आंदोलन के बाद देश का तापमान गर्म है.
इसलिए श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी की लिस्ट में जियो को डाला गया. तो अब आपका ध्यान है जियो यूनिवर्सिटी पर. आप चुटकुले बनाने में लगे हैं. मजाक उड़ा रहे हैं. मैं भी यही कर रहा हूं. इस लिस्ट में जियो को शामिल करके उन्होंने आपका ध्यान भटका दिया है.
इस बीच में सरकारी पैसे से बने देश के तीन सबसे महत्वपूर्ण संस्थान नियुक्तियों, एडमिशन के मामले में सरकारी नियमों और संवैधानिक प्रावधानों से आजाद हो गए. अभी ऐसे संस्थानों की तीन महीने के अंदर लाइन लग जाएगी.
अब सरकार धीरे से कह रही है कि जियो को दर्जा दरअसल तीन साल बाद मिलेगा, वह भी उस समय की स्थिति को देखते हुए. लेकिन इस बीच आप तो लुट गए. आपका रिजर्वेशन गया. इन सरकारी संस्थानों की नौकरियों में भी और एडमिशन में भी.
इसके अलावा बाकी दो संस्थान भी सरकार से पैसे लेंगे और रिजर्वेशन लागू नहीं करेंगे. यानी छह में से पांच संस्थानों में खेल हो गया और आपका ध्यान जियो पर लगा रहा.
क्या है इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस –
अन्य किसी उच्च शिक्षा संस्थान की तुलना में एक आईओई को ज्यादा अधिकार मिले होते हैं. उनकी स्वायत्तता किसी अन्य किसी संस्थान से कहीं ज्यादा होती है मसलन वे भारतीय और विदेशी विद्यार्थियों के लिए अपने हिसाब से फीस तय कर सकते हैं, पाठ्यक्रम और इसके समय के बारे में अपने अनुसार फैसला ले सकते हैं.
उनके किसी विदेशी संस्थान से सहभागिता करने की स्थिति में उन्हें सरकार या यूजीसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी, केवल विदेश मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित देशों के संस्थानों से सहभागिता नहीं कर सकेंगे.
एक बार आईओई का दर्जा मिल जाने के बाद इनका लक्ष्य 10 सालों के भीतर किसी प्रतिष्ठित विश्व स्तरीय रैंकिंग के टॉप 500 में जगह बनाना होगा, और समय के साथ टॉप 100 में आना होगा.
विश्व स्तरीय बनने के लिए इन आईओई दर्जा पाए 10 सरकारी संस्थानों को मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा स्वायत्तता तो मिलेगी ही, साथ ही प्रत्येक को 1,000 करोड़ रुपये भी दिए जाएंगे. निजी संस्थानों को सरकार की तरफ से किसी तरह की वित्तीय मदद नहीं मिलेगी.