नई दिल्ली/जयपुर, नेशनल जनमत ब्यूरो।
केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद से विभिन्न राज्यों की सत्तासीन बीजेपी सरकारें भी ‘अति भगवावाद’ में बहती नजर आ रही हैं। शायद यही वजह कि बीजेपी शासित राज्यों में सरकारों के भगवा प्रेरित कई फैसलों पर सवाल उठ चुके हैं।
अब राजस्थान सरकार का एक नया फैसला फिर विवादों में है. 11 दिसंबर को आए एक शासनादेश के अनुसार अब सरकारी पत्राचार के लिए इस्तेमाल होने वाले लेटर पैड पर भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का लोगो लगाना अनिवार्य होगा.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक गुरुवार को राज्य सरकार द्वारा सभी 72 विभागों, बोर्डों, निकायों, निगमों, स्वायत्त संस्थाओं को उनके पुराने छपे लेटर हैड पर दीनदयाल उपाध्याय का लोगो (तस्वीर) लगाने का आदेश दिया गया है।
आदेश में कहा गया है कि आगे से जो स्टेशनरी छपवाई जाये, उस पर भी ये लोगो होना चाहिए. 11 दिसंबर की तारीख के इस शासनादेश पर प्रमुख सचिव के दस्तखत हैं और इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने की बात कही गयी है.
पार्टियों ने किया विरोध-
विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि दीनदयाल उपाध्याय का लोगो अशोक स्तंभ के बराबर लगाना उसका अपमान है, साथ ही अलोकतांत्रिक कदम है.
कांग्रेस ने वसुंधरा सरकार पर संघ के एजेंडे को प्रशासन में लागू किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह से शिक्षा का भगवाकरण किया गया, उसी तरह से अब प्रशासन का भगवाकरण करने का प्रयास किया जा रहा है.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि वसुंधरा सरकार उपाध्याय को जबरन महापुरुष का दर्जा देने का प्रयास कर रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट इसे नियमों के खिलाफ बताया है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार के लेटर हेड पर किसी ऐसे व्यक्ति की तस्वीर लगाना जो कभी किसी संवैधानिक पद पर न रहे हों, पूरी तरह से असंगत है. पार्टी के अंदर वे अपने नेता का जिस तरह चाहे याद कर सकते हैं, लेकिन सरकार में लाना नियमों के विरुद्ध है.’ कांग्रेस ने राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील करने का फैसला किया है.
आजादी की लड़ाई में उपाध्याय का क्या योगदान है ?
वहीं कांग्रेस के प्रदेश महासचिव ने भाजपा से जवाब मांगा है कि पहले सरकार यह स्पष्ट करे कि उपाध्याय का आज़ादी की लड़ाई और राष्ट्र निर्माण में क्या योगदान था? साथ ही भाजपा यह भी जनता के बीच खुलासा करे कि वह दीनदयाल को अशोक महान के समकक्ष मानती है.
पंडित दीनदयाल को जबरन महापुरुष बनाने की यह सोच केवल व्यक्ति पूजा का उदाहरण है. यह राष्ट्रीय चिह्न का अपमान और असंवैधानिक है.
इससे पहले भी उठे हैं सवाल-
भाजपा सरकार पर इससे पहले भी संघी एजेंडा थोपने के आरोप लगते रहे हैं. 22 सितंबर, 2017 को विदेश मंत्रालय ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होमपेज पर ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज्म’ (एकात्म मानववाद) शीर्षक से एक ई-बुक अपलोड की थी.
जिसे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की कड़ी मेहनत का नतीजा बताया था, में आजाद भारत के शुरुआती इतिहास को तोड़-मरोड़ पेश किया गया था, साथ भाजपा को देश का एकमात्र राजनीतिक विकल्प कहा गया था.
इसके बाद उत्तर प्रदेश के स्कूलों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में भाजपा द्वारा आयोजित सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता पर भी सवाल उठे थे. इस प्रतियोगिता की तैयारी के लिए छात्रों को दी गई किताब पर हिंदुत्व की विचारधारा की प्रचार सामग्री होने की बात कही गयी थी.
सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सत्ताधारी दल को दलगत राजनीतिक प्रोपगेंडा का प्रचार-प्रसार करने के लिए जनता के पैसे और सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग करने की छूट है?
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