नई दिल्ली, नेशनल जनमत ब्यूरो
वैसे रैप सांग का भोजपुरी दुनियां में प्रचलन हाल ही के कुछ समय में आया है. उसी कड़ी में बलिया में जन्में डॉ. सागर का एक गीत ‘बंबई में का बा‘ पूरे देश में धूम मचा रहा है. यह गीत इसलिए भी चर्चा में है कि भोजपुरी टोन में फ़िल्मी दुनिया में पहली बार रैप सांग गाया गया है. जिसमें अनुभव सिन्हा और मनोज बाजपेयी ने पहली बार २६ साल बाद एक साथ काम किया है.
यह गीत अनुभव सिन्हा के निर्देशन में फिल्माया गया है. ऐसा शायद पहली बार हो रहा है कि भोजपुरी गीत के लिए इतने नामी-गिरामी कलाकार एक साथ कार्य कर रहे हैं. अभिनेता मनोज बाजपेयी और निर्देशक अनुभव सिन्हा जो खुद बिहार से ताल्लुक रखते हैं. जो भोजपुरी रैप के माध्यम से इनकी मनोदशा को सामने लाते हैं.
‘बंबई में का बा’ के बोल डॉ. सागर ने लिखे हैं जबकि गाना मनोज बाजपेयी ने गाया है. मनोज बाजपेयी का कहना है, “ये सांग लोगों के जिंदगी को छूता है'”. यह रैप सांग प्रवासी मजदूरों की जिंदगी को आधार बनाकर लिखा गया है. जो काम -काज के लिए अपनी माटी और देश-गाँव छोड़ मुंबई में बस गये हैं.
डॉ. सागर इस गीत के माध्यम से यह बताने की कोशिश करते हैं कि “मुंबई में रहने वाले प्रवासी आपने गाँव छोड़ इसलिए आये ताकि वह दो वक्त की रोटी का इन्तेजाम घर-परिवार के लिए कर सके. इसके सिवा उनके पास मुंबई में कुछ नहीं रखा.”
देश में लॉक डाउन के दौरान शहरो से लौटती हताश-निराश प्रवासियों की भीड़ हम सबने देखी है. उन प्रवासियों में हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे, कईयों के पैर घिस गये. कई लोग कई दिनों तक भूखे पेट चलते रहे. एक बहुत बड़ा तबका का इस तरह गाँव से शहरों की ओर रोजी-रोटी के लिए प्रवास और विकट स्थितियों में इतने बड़े पैमाने पर शहरों से घर की ओर पलायन मन में एक प्रश्न छोड़ जाता है.
आखिर ये लोग इतनी बड़ी संख्या में मुंबई-दिल्ली जैसे शहरों में आते क्यों हैं ? इनकी क्या मजबूरी होती है? कैसा उनका सामाजिक परिवेश होता है ? कैसे कैसे दर्द गुजरते हैं ? ऐसे तमाम प्रश्न मन में उठ खड़े होते हैं.
इस तरह के दर्द को कवि राकेश ‘कबीर’ की कविताओं में भी देखा जा सकता है. उनकी कविता ‘दूर बहुत है घर‘ को सौमि सैलेश ने बड़ी संजीदगी के साथ गाया है. कविता के बोल कुछ यूँ है –
दूर बहुत है घर/कैसे तय हो सफ़र
धूप नाराज है/छांव पड़ती है कम
लम्बी दूरियां/पर चल पाते कम
डॉ. सागर के साथ जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में बिताये समय और उनके जीवन दर्शन को बताते हुए युवा कवि डॉ. राकेश पटेल बताते हैं – सन 2006 में जेएनयू के दिनों से ही मुझे छोटे भाई की तरह से डॉ. सागर का स्नेह मिलता आ रहा है.
बलिया के एक गांव से BHU और फिर JNU पहुंचकर उच्च शिक्षा की डिग्री लेकर डॉक्टरेट करके एक प्रण लेकर डॉक्टर सागर मुम्बई पहुंचते हैं कि वे प्रोफेसर नहीं गीतकार बनेंगे। पिछले 12 सालों से वह भोजपुरी और हिंदी फिल्मों में गीत लिख रहे हैं।
कोविड की महामारी ने हमसे बहुत कुछ छीना है। डॉक्टर सागर जिस क्षेत्र से आते हैं उसके आसपास का भोजपुरी भाषी इलाका ही पलायन का गढ़ है। वे अपनी भाषा मे अपने लोगों का दर्द बयान करने में सक्षम गीतकार हैं.
उन्होंने पलायन के दर्द को अपने दो गीतों में प्रस्तुत किया जिसमें गांव शहर के भेद और पलायन की मजबूरी का चित्रण हुआ है। एक के बोल थे
कैसे आईं फेरु एहि नगरीया हो डगरिया मसान हो गइल।
इस गीत को सुधाकर स्नेह जी ने गाया और संगीतबद्ध किया था।
दूसरा भोजपुरी रैप
ना त इहँवा का बा
मुम्बई में का बा
इस गीत के साथ दो बड़े और अनुभवी नाम जुड़े। अभिनेता मनोज बाजपेयी और अनुभव सिन्हा। तीनो गाजीपुर, बलिया और बेतिया या यूं कहें कि भोजपुरिया माटी के लाल हैं। इन तीनो के साथ ने कमाल ही कर दिया। 24 घण्टे में इसे 15 लाख लोगों ने देखा और लिखे जाने तक इसे 60 लाख 56 हजार से ज्यादा बार सुना और देखा जा चुका है.
पलायन और ऊंच नीच के भेदभाव, विकास मे क्षेत्रीय असमानता, घर परिवार से दूर रहने की मज़बूरी, गांव ज्वार ,खेती बारी , बाटी चोखा सब कुछ समेटकर अद्भुत रैप गीत लिखने वाले डॉ सागर अत्यंत समर्थ गीतकार हैं । उनके सीने में अपने क्षेत्र और लोगों से जो मोहब्बत और दर्द है. उससे आगे और भी बेहतरीन गीत निकलेंगे।
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