नई दिल्ली, नेशनल जनमत ब्यूरो।
शहरों में जातिवाद खत्म नहीं हुआ है बस उसका तरीका बदल गया है। उच्च पदों पर बैठा व्यक्ति जातिवाद बहुत शातिर और महीन ढ़ंग से करता है। नई दिल्ली स्थिति अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में ऐसे ही एक संस्थानिक जातिवाद की पुष्टि हुई है। हालांकि ये जांच भी तब हुई पीड़ित महिला डॉक्टर ने अपनी जान देने की कोशिश के तहत जहर खा लिया था।
इससे पहले महिला डॉक्टर ने रेजीडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के माध्यम से तीन बार एम्स प्रबंधन को, महिला आयोग को, एस-एसटी आयोग को भी अपने साथ हो रहे उत्पीड़न की शिकायत लिखित रूप में दी लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
अब आत्मयहत्या की कोशिश के बाद एम्स के एससी-एसटी सेल ने जांच की तो आरोपों को सही पाया गया। जांच कर रही समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महिला से आरोपी फैकल्टी सदस्य ने ‘अपनी औकात में रहो’ जैसे वाक्यों और जातिगत शब्दों का प्रयोग किया था, इसलिए उनके ख़िलाफ़ सख़्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
एससी-एसटी सेल समिति द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि संस्थान के एक फैकल्टी सदस्य ने एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के खिलाफ ‘अपनी औकात में रहो’ जैसे शब्दों का प्रयोग कर मन में छिपे सामाजिक पूर्वाग्रह का प्रदर्शन किया है.
समिति ने कहा कि इस मामले को लेकर आंतरिक समिति ने निष्पक्ष होकर जांच नहीं की थी और महिला को अपनी शिकायत वापस लेने पर दबाव डाला जा रहा था.
एससी-एसटी सेल समिति ने इस मामले में अपनी 17 पेज की रिपोर्ट पिछले महीने 24 जून को एम्स के निदेशक डॉ. रणदीर गुलेरिया को सौंपी थी और आरोपी के खिलाफ सख्त प्रशासनिक/कानून कार्रवाई करने को कहा लेकिन अभी तक आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं गई।
आरोपी व्यक्ति संस्थान के सेंटर फॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च (सीडीईआर) में काम करता है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया, ‘आरोपी ने पीड़िता के खिलाफ ‘बिल्ली’, ‘औकात में रहो’ आदि शब्दों का इस्तेमाल किया, जो अपमानजनक, नीचा दिखाने वाला और गरिमा के खिलाफ हैं, खासतौर पर एक महिला के लिए. यह उसकी पेशेवर क्षमताओं को कम करने आंकना है.’
इस समिति की अध्यक्षता एम्स के डर्मेटोलॉजी एंड वेनेरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ केके वर्मा ने की थी. एम्स के उप निदेशक (प्रशासन) एसके पांडा ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट पर कार्रवाई शुरू कर दी है.
‘समिति ने कुछ कदमों की सिफारिश की है और उन्हें लिया जा रहा है. हम अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, इसलिए हम कारण बताओ नोटिस जारी कर रहे हैं.’
17 अप्रेल को आत्महत्या की कोशिश की थी-
इस साल 17 अप्रैल को सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर दवा की ओवरडोज के कारण अपने हॉस्टल के कमरे में बेहोश पाई गई थीं. इस संबंध में 16 मार्च को हुए कथित घटना को लेकर दर्ज एफआईआर में उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों से एक फैकल्टी सदस्य उनके साथ भेदभाव कर रहा है.
अपनी एफआईआर में रेजिडेंट डॉक्टर ने आरोप लगाया था कि 16 मार्च को एक फैकल्टी सदस्य ने मरीजों और सहयोगियों के सामने उनके खिलाफ असभ्य भाषा और जातिवादी गालियों का इस्तेमाल किया था।
पीड़िता ने दावा किया कि आरोपी ने कहा, ‘तू एससी है, अपने लेवल में रह.’ महिला ने कहा कि उन्होंने सीडीईआर प्रमुख से शिकायत की थी, लेकिन हर बार उन्हें लिखित शिकायत देने से रोक दिया गया.
पहले निष्पक्ष जांच नहीं की गई-
एससी-एसटी सेल की रिपोर्ट बताती है कि इसके पर्याप्त सबूत हैं कि आरोपी द्वारा अनुचित टिप्पणी की गई थी. इसे आरोपी द्वारा स्वीकार कर लिया गया है और गवाहों द्वारा और पुख्ता किया गया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीडीईआर द्वारा गठित आंतरिक समिति ने मामले में सही से जांच नहीं की और पीड़िता से शिकायत वापस लेने पर दबाव डाला गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़िता की शिकायतों को बार-बार ने सुनने और उनका अपमान करने के कारण उनमें असुरक्षा की भावना पैदा हुई और लगातार न्याय से वंचित किए जाने के कारण वो काफी निराश हुईं, संभवतः जिसकी वजह से उन्होंने 17.04.2020 को विषाक्त पदार्थों का सेवन करने जैसा चरम कदम उठाया.
इस मामले को लेकर रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने 22 मार्च को एम्स के निदेशक को पत्र लिखा था. समिति ने वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर, फैकल्टी सदस्य, डॉक्टर, नर्स और स्टाफ के सदस्यों के बयान दर्ज किए, जो कथित 16 मार्च की घटना के समय मौजूद थे.
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